धर्म इस जीवन को विकारमुक्त, विषादमुक्त, भयमुक्त, चिन्तामुक्त, पापमुक्त बनाने के लिये है।
सबके साथ हमेशा सद व्यवहार करना और दूसरों के जीवन में प्रसन्नता का कारण बनना भी धर्म है।-
धर्म से ही व्यक्ति का कल्याण होता है। धर्म ही व्यक्ति का उत्थान करता है। धर्म ही धारण करने योग्य है। धर्म के मार्ग से अर्थ -काम प्राप्त हो तो अंत में मोक्ष जरूर प्राप्त होता है।
धर्म का परलोक की चिंता में होना बड़ा खतरनाक हुआ है, इसके दुष्परिणाम सामने हैं। लोग सोचते हैं जीवन अभी के लिये है धर्म कल के लिये।
ये बिल्कुल ही गलत धारणा है।
धर्म इसी जीवन को विकारमुक्त, विषादमुक्त, भयमुक्त, चिन्तामुक्त, पापमुक्त बनाने के लिये है।
ईश्वर के सामने बैठकर पूजा करना धर्म नहीं है, अपितु ईश्वर के सामने बैठकर अपने विकारों को दूर करना और उनके संदेश को समझना और उनको आचरण करना धर्म है, अर्थात सबके साथ हमेशा सद व्यवहार करना और दूसरों के जीवन में प्रसन्नता का कारण बनना धर्म है।
धर्म माने - प्रत्येक सद्कर्म को सावधानी पूर्वक करना।
इसलिए यह सोचकर पूजा मत करो कि मरने के बाद स्वर्ग मिले, इसलिए करो कि जीवन विकारमुक्त होकर जीते जी स्वर्ग जैसा हो जाये। वास्तव में विकारमुक्त होना और सद्कर्म करने की प्रवृत्ति बनाना ही ईश्वर की पूजा हैI
*धर्मो यो दयायुक्तः सर्वप्राणिहितप्रदः।*
*स एवोत्तारेण शक्तो भवाम्भोधेः सुदुस्तरात्॥*
जो और सब प्राणियों का हित करने वाला हो वही धर्म है। वैसा धर्म ही सुदुस्तर भवसागर से पार ले जाने में शक्तिमान है।
*आज का दिन शुभ मंगलमय हो।*
*जय श्री गुरुदेव जी*
**जय श्री राम**
**जय श्री कृष्ण**
*जय महाकाल*
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